सन् २००५ को भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कारबाट सम्मानित भारतका कवि कुँवर नारायण (जन्म १९२७ सेप्टेम्बर १९) इतिहास र मिथकमार्फत वर्तमानलाई हेर्ने विशिष्ट सर्जक मानिन्छन् । भारतमा ज्ञानपीठ पुरस्कारलाई सर्वश्रेष्ठ पुरस्कारको रूपमा लिइन्छ । मुख्य विधा कविता भए पनि लेख, कथा, समीक्षा पनि लेखेका छन् कुँवरले । उनका कविताहरू इन्टरनेटमै खोजेर पढेको हुँ । त्यसपछि उनको सशक्त कवित्त्वको झलक मिल्दै गयो । वाद, खेमा, उँच-नीचको हिसाब नगरी उनका रचनाहरू मन पराउन सकिन्छ, त्यो चुम्बकीय शक्ति छ तिनमा । सरल भाषाका कारण उनको रचनाले पाठकलाई सजिलै साथी बनाउँछन् । अहिले सर्वत्र विचित्र परिस्थिति छ, जे हो भनेर मान्यो, त्यो हुँदैन । सबै कुरा विडम्बनापूर्ण, मुखुण्डोमय ! यस्तै सन्दर्भ गाँसेर कुँवरले लेखेको ‘इंतजाम’ कविता उनको ८४औं जन्मोत्सवको अवसर छोप्दै बाँड्न चाहेँ ।
इंतजाम
कल फिर एक हत्या हुई
अजीब परिस्थितियों में ।
अजीब परिस्थितियों में ।
मैं अस्पताल गया
लेकिन वह जगह अस्पताल नहीं थी ।
वहां मैं डाक्टर से मिला
लेकिन वह आदमी डाक्टर नहीं था ।
उसने नर्स से कुछ कहा
लेकिन वह स्त्री नर्स नहीं थी ।
फिर वे आपरेशन-रूम में ले गए
लेकिन वह जगह आपरेशन रूम नहीं थी ।
वहां बेहोश करने वाला डाक्टर
पहले ही से मौजूद था-मगर वह भी
दरअसल कोई और था ।
फिर वहां एक अधमरा बच्चा लाया गया
जो बीमार नहीं, भूखा था ।
डाक्टर ने मेज़ पर से
आपरेशन का चाकू उठाया
मगर वह चाकू नहीं
ज़ंग लगा भयानक छुरा था ।
छुरे को बच्चे के पेट में भोंकते हुए उसने कहा
अब यह बिलकुल ठीक हो जाएगा ।
yesto po ta kabita!
ReplyDeletethanks for sharing.
oh, so touching poem!!!
ReplyDeleteThanks for the information on this poet. I would like to read him more and more.
a touchieeee poem..luved it
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